ये धरा विविधता से भरी है ,
कभी तुम्हे अपनी तपिश से झुलसाती है।
कभी तुम्हे बर्फ़ीली हवाओ से कपकपाती है ,
तो कभी तूफानी हवाओ से झुंझुलात्ती है।
घर आ जा बेटा सब छोड़ छाड़ के ,
हम भी, यहा ऐसा है, वहाँ वैसा है , की बातें करेंगे।
हम भी यहाँ वहाँ की बातें करेंगे।
घर आ जा बेटा , तेरी बहुत याद आती है।
घर आने का मन तो मेरा भी है ,
घर की याद मुझे भी आती है।
घर में मेरी माँ , पत्नी और बच्चे भी तो है।
मैं भी पिता हूँ , कभी कभी सोचता हूँ कि बच्ची कैसी दिखती होगी।
पर पापा, मैं घर नही आ सकता।
मेरी धरा माँ की सुरक्षा फिर कौन करेगा,ये बात मुझे सताती है।
धरा की सुरक्षा करना औरो का भी काम है।
हमारे भी तो सपने है, हमे भी तो आगे बढ़ना है,
हमे भी तो पैसा और नाम कमाना था।
फिर तू क्यों नही डॉक्टर, इंजीनियर बन जाता।
घर आ जा बेटा, तेरी जान की फिक्र मुझे रोज सताती है।
बात डॉक्टर, इंजीनियर बनने की नही है।
बात तो हम जो कर रहे है, उसे अच्छे से करने की है।
बस फर्क सिर्फ इतना है कि आपके लिये जो धरा है,वो मेरे लिए धरा माँ है।
और माँ शब्द जब जुड़ जाता है, वहाँ उसकी सेवा में अगर मगर नही आता।
वो तो मेरी जननी है और उन्ही के कारण ये जहां है।
आशा है आप समझ गए होंगे।
मैं समझ गया बेटा और कामना करता हूँ कि ऐसी सोच सभी बच्चो की अपनी धरा माँ और अपने माता पिता के लिए हो।
वंदे मातरम।
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